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Mashaal
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महिलाएँ सामाजिक उन्नति, स्थिरता और विकास के लिए महत्वपूर्ण हैं, वे परिवारों की रीढ़ की हड्डी का काम करती हैं, अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान देती हैं और शिक्षा, देखभाल और उद्यमिता में अग्रणी भूमिका निभाती हैं। फिर भी, उन्हें माँ के गर्भ से लेकर, शिक्षा के अभाव, बुरे चरित्र वाले लोगों के मनोरंजन का स्रोत, दहेज की शिकार, हर विषम परिस्थिति का सामना करना पड़ता है। सब अनुभूति को सामने रखकर लेखिका मुख्य चरित्र अरुणिमा के माध्यमसे अपने उपन्यास मशालमें सभी पहलुओं का वर्णन किया है। पुस्तक में उन्होंने १९५६,१९८६कि बेश्याबृति एक्ट ,घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम, 2005 ,२००६कि वीमेन एंड चाइल्ड एक्ट, भारत में,महिलाओं की जनसंख्या,महिला आरक्षण विधेयक 2023 के बार्रे में आलोचना किया जैसे कानून महिलाओं को सुरक्षित रहने में मदद करते हैं।उनका कहना एक मजबूत समाज बनाने के लिए सशक्त महिलाओं की आवश्यकता होती है. मगर सभी त्रासदियों का समाधान ढूँढ़ने की पूरी कोशिश करने वाली अरुणिमा निराश हो जाती है क्योंकि समस्या कभी खत्म नहीं होते।.अंत में, उसके दो प्रशंसकों ने उसे सांत्वना दी और साबित किया कि उसके सभी उत्कृष्ट कार्य महिलाओं के पक्ष में हैं। उन्होंने उसकी तुलना अंधेरे में पीड़ित सभी महिलाओं के लिए एक मशाल(ज्योति) से की है।
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