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Dr. Snehlata Dwedi Aaryaa

डॉ स्नेहलता द्विवेदी ‘आर्या’
डॉ स्नेहलता द्विवेदी ‘आर्या’ एक आदर्श शिक्षिका, चिंतक और सांस्कृतिक-सामाजिक कार्यकर्ता हैं। उनकी प्रारंभिक शिक्षा बोकारो स्टील सिटी, सिमडेगा, गुमला के विद्यालयों (झारखंड) में हुई तत्पश्चात विनोवाभावे विश्वविद्यालय से स्नातक एवम् रांची विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र में स्नातकोत्तर और डॉक्ट्रेट की उपाधि प्राप्त की है। उन्हें साहित्य संगम संस्थान, नई दिल्ली द्वारा उनके साहित्यिक और सामाजिक योगदान के लिए उन्हें डॉक्टरेट की मानद उपाधि से विभूषित किया गया।
डॉ स्नेहलता द्विवेदी ‘आर्या’ ने कई साझा संग्रह में अपनी कविताएँ साझा की हैं, इसके अतिरिक्त 300 से अधिक कविताएँ विभिन्न पत्र पत्रिका अख़बार और अन्य देश-विदेश की साहित्यिक पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। आर्या मूलत: एक रचनाकार है कविता के क्षेत्र में तो उनका योगदान है ही शोध पत्रिकाओं में भी वेद में नारी की स्थिति और वेदों में पर्यावरणीय विचार आदि से संबंधित आलेख प्रकाशित हैं। गांधी दर्शन पर उनकी एक पुस्तक THE POLITICS OF SURVIVAL IN INDIA AND GANDHI बहुत प्रसिद्ध हुई। दुसरी पुस्तक ‘प्रेमाश्रु’ है। आर्या की कई लेख और कहानियाँ भी अख़बारों में जैसे रांची एक्सप्रेस वर्तमान अंकुर इत्यादि में प्रकाशित हुईं हैं।
आर्या ने कविता की विविध विधाओं में अपनी लेखनी आजमाई है आॅनलाइन जगत में भी उन्होंने अपनी शानदार उपस्थिति दर्ज़ की है और उन्होंने ‘गूँज कलम की’ साहित्य संस्थान को स्थापित किया और इस मंच की अध्यक्ष हैं। हिंदी साहित्य जगत में आर्या को उनके साहित्यिक योगदान के लिए याद किया जाएगा।
शिक्षक के रूप में भी आर्या अपनी बेहतर सेवा प्रदान करने की कोशिश करतीं हैं और एक सफल तथा लोकप्रिय शिक्षक हैं। उन्हें बिहार प्रांत में कई मंचों के द्वारा उत्कृष्ट शैक्षणिक सेवा के लिए सम्मानित किया गया है और प्रांतीय स्तर पर बेस्ट टीचर का सम्मान भी उन्हें प्राप्त है।
कई सामाजिक संस्थाओं से भी डॉक्टर स्नेहलता द्विवेदी आर्या जुड़ी हुई हैं उन्हें कबीर साहित्य के अनुवाद कार्य के लिए कबीर कोहिनूर सम्मान से नई दिल्ली में बाबा साहब भीमराव अंबेडकर अंतरराष्ट्रीय सभागार में सम्मानित किया गया, इसके अतिरिक्त आर्या को 100 से अधिक सम्मान प्राप्त हैं। आर्या ने अपनी साहित्य की यात्रा में कभी न रुकने का संकल्प लिया है। साहित्य की विनम्र सेवा के लिए आर्या कृत संकल्पित हैं और मानती हैं कि मानवीय भूल संभव है एवं परिमार्जन, शुद्धिकरण हमेशा मानव जीवन की प्राणशक्ति है व साहित्य अनुरागियों के लिए अनुकरणीय है। इस भाव से ही आर्या साहित्य सेवा में लगी हुई हैं और सभी सुधि पाठकों का सादर अभिवादन करते हुए अपनी इस रचना को स्वान्त: सुखाय सर्वजन हिताय के भाव से समर्पित कर रही हैं।

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