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Shraddhanjali se Tarpan tak
₹ 50.00 – ₹ 150.00
Author- Priyanka Shrivastav Shubhr
Description
प्रियंका श्रीवास्तव ‘शुभ्र’ द्वारा लिखित कहानियों का यह पहला संग्रह है। इन्होंने पुस्तक में 12 कहानियों को सम्मिलित किया है। सभी कहानियाँ घर-घर की कहानी से जुड़ी है। इस पुस्तक को इन्होंने अपनी सास स्व0 श्रीमती सीता देवी को समर्पित किया है। यह सम्मान ही प्रियंका के दिल में उनके लिए प्रेम को दर्शाती है । प्रियंका के अनुसार वह बहुत सुलझी महिला थीं।
इस पुस्तक की शुरुआत ‘श्रद्धांजलि’ कहानी से और अंत ‘तर्पण’ शीर्षक से हुई है। शायद इसी कारण लेखिका ने पुस्तक का नामकरण ही ‘श्रद्धांजलि से तर्पण तक’ किया है। विशेषतया शीर्षक ने ही मुझे आकर्षित किया है। जब मैं इस पुस्तक की पाठक बनी, तो महसूस किया कि लेखिका ने परिवार के अंदर पनपने वाली आकांक्षाओं , द्वेष तथा अपेक्षाओं का बहुत गहराई से अध्ययन किया है। इन्होने माँ से लेकर भाई-बहन, नाते-रिश्तेदारों तथा पति-पत्नी के आपसी सम्बन्धों को कहानी के माध्यम से सही-सही उकेरने का प्रयास किया है। साथ ही इन्होंने पाठक की एकरसता को कम करने के लिए विविधता का भी ख्याल रखा है। समाज के हर लिंग, आयु और परिवेश को शामिल करने की कोशिश की है।जहाँ तक मेरी समझ है इस प्रयास में वे सफल रहीं हैं। जिनमें उपयोग किए गए शब्द ‘श्रद्धांजलि’ किसी पथप्रदर्शक के लिए आता हैं तथा ‘तर्पण’ अपने पूर्वजों का किया जाता है। दोनों ही शब्द मन की श्रद्धा और बुजुर्गों के प्रति कर्तव्य से जुड़ा है। इसमें लेखिका के हृदय के आदर भाव प्रकट होते हैं। उनका परिवार के प्रति समर्पण दिखता है।
कहानियों के शीर्षक की बात की जाए तो ‘एक पिन चुभा’ कहानी का शीर्षक कुछ सही नहीं लगा। अन्य शीर्षक कहानी के अनुसार हैं। संग्रह की अधिकतर कहानियाँ पारिवारिक वातावरण में पलती-बढ़ती हैं। हर घर-परिवार में उभरने वाले तनाव के तुच्छ से कारणों का खुलासा करते हुए लेखिका का प्रयास रहा है कि उनसे प्रभावित हो कर लोग बिखरें नहीं, प्रत्युत समझदारी से परिवार को उस मोह-पाश से बाहर निकाल कर शांति कायम रखें। सभी एक दूसरे की भावनाओं की कद्र करें। जहाँ परिवार जुड़ नहीं पाया वहाँ लेखिका का दर्द पाठक महसूस कर पाता है।
यहाँ अधिकतर कहानियों के कथानक एकोन्मुख है। सभी कहानियों में मुख्य पात्र एक ही है और घटनाएं उनके आस-पास ही घूमती है। इस संग्रह में स्त्री के सभी तरह के रूपों की व्याख्या करने का प्रयास किया गया है। एक में माँ, दूसरे में बहन और तीसरे में पत्नी के रोल में उसकी भावनाओं का चित्रण बहुत बारिकियों के साथ किया गया है। सभी रूपों में उसने परिवार को बांधने की चेष्टा की । लेकिन उन्हें परिवार से एक मीठे बोल का भी आधार नहीं मिला। छोटी-छोटी इच्छाएँ मन में दबी रही। जिसका उदाहरण ‘श्रद्धांजलि’ के मुख्य पात्र ‘चाची’ के डायरी के पन्नों पर अंकित की गई इच्छाएँ हैं। उनकी चाह लेखिका को उद्विग्न करती हैं, लेकिन बच्चों के लिए उसका कोई महत्व नहीं था। सभी दिखावे की होड़ में लगे थे। यहां लेखिका के हृदय की विकलता साफ झलकती है। इसी तरह की कहानी ‘वसीयतनामा’ है, जिसमें औरत के मानदेय का महत्व नहीं के बराबर है। बहन की तकलीफ का कोई साथी नहीं था। लेकिन मरने पर सभी भाई-बहन उपस्थित हो गए। लेकिन जब उसकी वसीयत पढ़ी गई, उसके बाद के हालातों को लेखिका ने इन शब्दों से बयान किया है।
‘बारी-बारी से सभी के सामान बाहर निकल रहे थे।’
इसी तरह पत्नी के रूप में एक किरदार ‘भाभी’ छोटी-छोटी चीजों जैसे लहठी, बैट्री की टॉर्च के लिए जीवन भर तरसती रही। टॉर्च के अभाव में एक दिन जब उनकी मृत्यु हो गई, तो सारी वस्तुएँ सहज ही उपलब्ध हो गईं। ये सारी कहानियाँ स्त्री की त्रासदी की हैं। इसी क्रम में लेखिका ने नीचे तबके की लड़की ‘श्वेता’ की भाग्यहीनता का भी जिक्र ‘ परिमार्जन’ में किया है। कमली नायिका के रूप में थोड़ा पढ़-लिख कर बड़े सपने संजोने लगती है। उसने अपनी बेटी श्वेता को भी आगे पढ़ा कर अपने सपनों का विस्तार किया। लेकिन जमींदार के अत्याचार ने उसकी बलि लेकर सारे सपने मिटा दिए। कहने का अर्थ है कि स्त्री का स्वरूप हमेशा भोग्या का ही रहा है। कथानक की घटनाएँ रिश्तेदारों की कुटिलता को बखूबी बयान करती हैं। किस तरह छोटी-छोटी बातें सोच में दीमक बनकर बैठ जाती हैं। बुजुर्गों द्वारा किए गए निर्णय,
‘ घर में आने वाले सगे-सम्बन्धियों को बताना है कि सास-बहू पुराण यहाँ नहीं होगा।’
ने सकारात्मकता को जगह दी है। लेखिका द्वारा दिया गया समाधान प्रशंसनीय है। साथ ही बड़ी ही सरल घटनाओं से पाठक को अंत तक बाँधे रखा है।
इसके अलावा उन्होंने उम्र के अंतिम छोर पर जीने वालों के लिए जीवन के खुशनुमा पल को भी संजोया है। ‘प्यार के दो पल’ में उस पार्क के हर व्यक्ति को उस बुजुर्ग जोड़ी के प्रति आकर्षित कर दिया। ऐसी ही एक कहानी है ‘बेरुटीन जिंदगी’। अपने जीवन को एक लय-ताल में बाँधने की सलाह हर बुजुर्ग अपने बच्चों को देते हैं। लेकिन यहाँ साफ शब्दों में कहे गए विचार हैं –
‘कभी-कभी कुछ दिनों के लिए ये बेरूटीन जिंदगी आनंदित करती है।’
इसके साथ ही लेखिका ने ‘एक थप्पड़’ कहानी के द्वारा भटके नौजवानों के लिए सकारात्मक सोच को भी जगह दी है।इसमें नायक राजू ने थप्पड़ मारने वाले को ही अपना आदर्श बनाया है। लेखिका ने पाठक तक उसकी भावना को पहुँचाने के लिए ‘दूधिया सफेद फिएट’ का जिक्र किया है। जो नायक के लिए भैया-भाभी का प्रतीक था। इस तरह अगली पीढ़ी के लिए यह कहानी पथप्रदर्शक का काम करने में कामयाब है।
इस पुस्तक में स्त्री-चरित्र ही नहीं , बल्कि पुरुष वर्ग की मानसिकता को भी जगह दी गई है। तीन कहानियाँ ‘सैंडविच’, ‘रोड-मेट’ और ‘एहसास’ पुरुष प्रधान रचनाएँ हैं। ‘एहसास’ जहाँ पुरुष-प्रेम की पराकाष्ठा दिखाता है वहीं ‘सैंडविच’ आज के वयस्कों के यथार्थ का आईना है, जो मानक बनने के प्रयत्न में सैंडविच बन जाता है। सबसे बड़ी बात नायक आदर्श बेटा बनने के क्रम में झेले गए दर्द से अपने बेटे को बचाने के लिए उसे जो स्वच्छंदता देता है उसी के द्वारा छला जाता है। उसी तरह ‘रोड-मेट’ कॉलेज के समय उपजे छद्म प्रेम से किस तरह पुरुष मन बँधा रहता है, इसका सुंदर चित्रण किया है।
भाषा की बात करें तो बड़ी ही सरल भाषा का प्रयोग किया गया है। ज्यादा नहीं मगर एक कहानी ‘परिमार्जन’ में बोल-चाल में आदिवासी भाषा का प्रयोग किया है। विशेषणों का छुटपुट प्रयोग जैसे ‘घर का भेदी’ , ‘विचारों का संदूक’ किया है । इसमें कुछ और वृद्धि होती तो कहानियों का सौंदर्य बढ़ जाता ।
अंत में मैं कहूँगी कि यह पुस्तक जरूर पढ़ें। हर वर्ग के लोगों को यह पसन्द आएगी। सभी के लिए कुछ-न-कुछ सामग्री अवश्य है। चुँकि यह लेखिका का पहला प्रयास है इसलिए इनके कामों की सराहना करुँगी। भविष्य में इसी तरह की भावनाओं का लक्ष्य रख सार्थक लेखन की कामना करती हूँ।
द्वारा – संगीता गोविल, पटना
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Additional information
Weight | .5 kg |
---|---|
Dimensions | 11 × 6 × 1 cm |
Book | Paperback, E-Book |
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