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Kailash Meshram
भूल कर नैतिक नियम, आधुनिक हम हो गये है।
मान्यताएँ पूर्वजों की, जलकर चितायें हो गई।
मन का उद्देलन, प्रकृति का सानिध्य, प्रेम का प्रस्फुटन और परिस्थितिजन्य प्रसंग नयी रचनात्मकता का आविर्भाव करता है। भिन्न भिन्न मनोदशाएँ भिन्न भिन्न कृतित्व को सृजित करती है। प्रस्तुत काव्य गुच्छ ऐसे ही अनेक मनोभावों का चित्रण एवं प्रस्तुतीकरण है, जिसमें प्रेम, सुख, दु:ख, संयोग, वियोग के साथ साथ अन्य मनोस्थितियों का प्रयोग है। काव्य की भाषा और शैली सहज, सरल और शीघ्र समझनीय है जो आम पाठक को आसानी से ग्राह्य है।
भारत के हृदय स्थल मध्यप्रदेश के बालाघाट जिले के खापा गाँव में 22 फरवरी 1973 को जन्मे एवं कटंगी शहर में पले-बढ़े, स्नातक, पेशे से बैंक अधिकारी (वर्तमान में भारतीय स्टेट बैंक में सहायक महा प्रबंधक) कैलाश मेश्राम किशोरावस्था से ही हिन्दी साहित्य एवं संगीत के प्रति अनुराग एवं रुचि रखते है। लेखन विशेषकर काव्य जिसमें कम शब्दों में कथनीय बात पूरी कह दी जाती है, पसंदीदा विधा है। समय समय पर विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित, सोशल मीडिया एवं काव्य मंचों पर परिलक्षित कैलाश मेश्राम सतत रचनाशील है।
त्यागकर ये वहशीपन, सभ्य कर तू आचरण।
धर वसुधा कुटुंबकम्, जो है भारती संदेश में।
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